Thursday, March 6, 2008

पिछड़े राज्य की पिछड़ी स्वास्थ्य सेवाएं

छत्तीसगढ़ विकास के कई पैमानों में पिछड़ा हुआ राज्य है. मानव विकास इंडेक्स में यह राज्य 21वें स्थान पर आता है. दलित महिलाओं की बात अलग से नहीं की जाए तब भी यहां कुपोषण की दर 52 से 56 फीसदी है. 3 साल से कम उम्र के बच्चों में भी 50 प्रतिशत से अधिक ऐसे हैं जिनको तमाम राष्ट्रीय पोषण आहार कार्यक्रमों के बावजूद पर्याप्त आहार नहीं मिलता. राज्य के सामुदायिक व मिनी स्वास्थ्य केन्द्रों में स्वीकृत पदों के विरूध्द केवल 13 फीसदी महिला चिकित्सक पदस्थ हैं, 87 फीसदी पद रिक्त हैं. महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के 3400 पद भरे गए हैं जबकि स्वीकृत पदों की संख्या 9000 के आसपास है. इन अस्पतालों में दवाओं की उपलब्धता का आंकलन इसी विधानसभा सत्र में स्वास्थ्य मंत्री के एक जवाब से किया जा सकता है जिसमें उन्होंने बताया है कि दवाओं के लिए बजट में स्वीकृत की गई 80 फीसदी राशि खर्च ही नहीं हो पाई. सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों को सच माना जाए तो अनुसूचित जाति की सर्वाधिक आबादी लगभग 43 फीसदी लोग खेतों में मजदूरी का काम करते हैं. 26 प्रतिशत और लोग भी कहीं न कहीं मजदूरी ही करते हैं. उनके काम के घंटे तय नहीं होते न ही उन्हें मजदूरी ही पर्याप्त मिलती. इस साल राष्ट्रीय आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि यहां की औसत ग्रामीण आबादी केवल 12 रूपए प्रतिदिन खर्च कर पाने की क्षमता रखती है तो निश्चित ही इस आबादी में एक बहुत बड़ी संख्या इन दलितों की है और जाहिर है इनमें आधी महिलाएं हैं.
स्वास्थ्य कार्यक्रमों में जिन पहलुओं की अक्सर अनदेखी कर दी जाती है, श्री विनोद डोंगरे ने अपने अध्ययन पत्र में उनके अनेक पहलुओं को सामने लाने का प्रयास किया है. मसलन निःशुल्क इलाज के लिए राशन कार्ड आदि बनवाने में आने वाली परेशानी, तनाव खत्म करने के लिए शराब का आदी होकर बीमारियों को आमंत्रण देना, पौष्टिक खाना अर्जित कर पाने की क्षमता नहीं होना इत्यादि. इन मुद्दों पर सभी विचारशील लोगों को गंभीरता से विचार करने व प्रभावी कार्रवाई का प्रयास करने की आवश्यकता है.
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-- Rajesh Agrawal
Journalist
Bilaspur 098263 67433
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